गृहमंत्री होने के नाते एसीबी सीधे भजनलाल शर्मा के अधीन काम करती है।
आखिर एसीबी की कार्यवाही की खबर किसने लीक की?
पिछली कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पूरे पांच वर्ष गृह विभाग अपने पास रखा। इसको लेकर तब भाजपा के नेताओं ने गहलोत की आलोचना की। गत वर्ष 15 दिसंबर को भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री के पद की शपथ लेने के बाद भजनलाल शर्मा ने गृह विभाग भी अपने पास रखा है। विभागों को बांटने का विशेषाधिकार मुख्यमंत्री के पास है। ऐसे में कोई भी मुख्यमंत्री किसी भी विभाग को अपने पास रख सकता है। चूंकि गृह विभाग मुख्यमंत्री शर्मा के पास हैं, इसलिए पुलिस महकमे में होने वाली घटनाओं की जिम्मेदारी सीएम शर्मा की ही है। ऐसे में दूदू के कलेक्टर रहे आईएएस हनुमान मल ढाका के 15 लाख रुपए के रिश्वत के प्रकरण में सीएम शर्मा को दखल देना चाहिए। एसीबी के एडीजी हेमंत प्रियदर्शी का कहना है कि हनुमान मल ढाका के द्वारा रिश्वत मांगने के पुख्ता सबूत थे। ढाका ने परिवादी से 7.50 लाख रुपए मिठाई के डिब्बे में रखकर लाने के लिए कह भी दिया था। एसीबी ने ढाका को रंगे हाथों गिरफ्तार करने की योजना भी बना ली थी, लेकिन एसीबी की योजना लीक हो गई। इसे ढाका को रंगे हाथों गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। पटवारी हंसराज चौधरी और सांवरलाल जाट के विरुद्ध रिश्वत का प्रकरण दर्ज कर लिया है। इतना ही नहीं तीनों आरोपियों के मोबाइल और कलेक्टर ऑफिस का कंप्यूटर भी जब्त कर लिया है। कलेक्टर ने यह रिश्वत 215 बीघा भूमि के नामांतरण के प्रकरण में मांगी थी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को इस बात की जांच करवानी चाहिए कि आखिर किस अधिकारी ने एसीबी की योजना की खबर को लीक किया। कलेक्टर को रंगे हाथों पकड़ने के मामले में एसीबी के स्तर पर भी लापरवाही सामने आई है। ढाका ने परिवादी से 18 अप्रैल को ही रिश्वत की राशि दूदू स्थित सरकारी आवास पर लाने को कह दिया था, लेकिन एसीबी के अधिकारियों ने रिश्वत की राशि परिवादी से लाने को कह दिया। परिवादी का कहना रहा कि एक साथ 7.50 लाख रुपए एकत्रित करना मुश्किल है, लेकिन एसीबी के अधिकारियों ने अपनी ओर से कोई पहल करने के बजाए रिश्वत की राशि का इंतजाम करने की जिम्मेदारी परिवादी को ही दे दी। यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के शासन में जब बीएल सोनी एसीबी के डीजी थे, तो ऐसे मामलों में सोनी ने डमी नोट की व्यवस्था करवाई थी। यानी ऊपर नीचे असली और बीच में नकली नोट रखकर अधिकारियों को रंगे हाथों पकड़ा था। एसीबी के अधिकारी दूदू कलेक्टर के मामले में भी ऐसी कार्यवाही कर सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हनुमान मल ढाका को रंगे हाथों गिरफ्तार होने से बच गया। एसीबी के अधिकारियों ने जब परिवादी को ही साढ़े सात लाख रुपए लाने को कहा तभी योजना की जानकारी ढाका को दे दी गई। सीएम शर्मा को एसीबी की कार्यप्रणाली की भी जांच करवानी चाहिए। भजनलाल शर्मा माने या नहीं लेकिन आईएएस के रिश्वत का यह प्रकरण भाजपा सरकार की प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। भ्रष्टाचार के मामलों में जब केंद्रीय एजेंसियां दो दो मुख्यमंत्रियों को जेल भेज रही है, तब भाजपा शासित राज्य में भ्रष्टाचार के सबूत होने के बाद भी कलेक्टर स्तर का आईएएस बचकर निकल जाए तो फिर सवाल तो उठेंगे ही। इस मामले में आईएएस को सिर्फ एपीओ करने से काम नहीं चलेगा। सीएम शर्मा को भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस नीति पर अमल करना है, तो उन अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्यवाही की जानी चाहिए जिनकी वजह से आईएएस को रंगे हाथों पकड़ा नहीं जा सका। प्रशासनिक सेवा के लिए इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि हनुमान मल ढाका गत वर्ष ही आरएएस से आईएएस में पदोन्नत हुए और दो माह पहले ही दूदू के कलेक्टर बने। ऐसा प्रतीत होता है कि कलेक्टर बनते ही ढाका के खाने कमाने का काम शुरू कर दिया। इसे ढाका की हिम्मत ही कहा जाएगा कि परिवादी से सीधे तौर पर रिश्वत मांग ली। आमतौर पर इतने बड़े स्तर का अधिकारी दलाल के माध्यम से रिश्वत लेता है, लेकिन इस मामले में प्रतीत होता है कि ढाका को अपने पटवारी हंसराज चौधरी और सांवरलाल जाट पर भी भरोसा नहीं था। भरोसा होता तो रिश्वत की राशि पटवारियों के पास मंगवाई जाती। चूंकि दूदू नया जिला बना है, इसलिए कलेक्टर का आवास डाक बंगले में ही बनाया गया है। ढाका ने डाक बंगले वाले आवास पर ही रिश्वत की राशि लाने को कहा था।