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भगवान गणेश माता पार्वती के पुत्र, मां पार्वती गणेश जी की माता ही नहीं बल्कि निर्माता भी है. मान्यता के अनुसार देवी पार्वती ने चंदन के मिश्रण से शिव की अनुपस्थिति में गणेश का निर्माण किया जब स्नान कर रही थी तो उन्होंने गणेश को अपने स्नान घर के दरवाजे की रक्षा करने का कार्य सौंपा. आज्ञा के अनुसार भगवान गणेश जी भी रक्षा कर रहे थे तभी वहां भगवान शिव आए शिव के घर लौटने के Bal Ganesh ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया जिसके कारण गणेश और शिवजी के बीच बहुत बड़ा युद्ध हुआ और गुस्से में आकर भगवान शिव ने गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया मैं देखकर माता पार्वती बेहद क्रोधित हुई और भगवान शिव से को फिर से जीवित करने का वरदान मांगा और वचन के अनुसार भगवान शिव ने भी गणेश के झाड़ पर गज का सर लगा दिया और इसी तरह गजानन का जन्म हुआ. इसी के साथ भगवान श्री गणेश को सभी शुभ कार्यों में सर्वप्रथम पूजने का वरदान भी मिला.
गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है
भगवान श्री गणेश को गजानन, विनायक, रिद्धि-सिद्धि के स्वामी, गौरी नंदन, बप्पा आदि कई नामों से पुकारा जाता है.
गणेश चतुर्थी अर्थार्थ गणेश जी के जन्मदिन का पर्व यह पर्व हर साल देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है तथा 10 दिनों तक गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाया जाता है.
विश्व में कई जगह मनाया जाता है यह पर्व
गणेश चतुर्थी का पर्व केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों जैसे थाईलैंड कंबोडिया इंडोनेशिया और नेपाल में भी पूरी धूमधाम से भक्ति भावना से इस पर्व को मनाया जाता है. महाराष्ट्र गोवा केरल तमिलनाडु कुछ ऐसी शहर है. जहां इस पर्व का विशेष इंतजार किया जाता है. भक्त बड़ी बेसब्री से गणेश चतुर्थी का इंतजार करते हैं.
और इस पर्व को बहुत धूमधाम से मनाते हैं.
इको फ्रेंडली गणपति अपनाएं
गणेश चतुर्थी देश में व्यापक रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है. जो “इको फ्रेंडली दिवसीय अनुष्ठान” का निरीक्षण करता है. गणेश उत्सव मनाते समय एक बात का खास ध्यान रखना चाहिए हमारे पर्यावरण को नुकसान ना हो, क्योंकि गणेश उत्सव के अंतिम दिन पर जब भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. वह मूर्तियां प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं. जिनके कारण यह मूर्तियां पानी में जाते ही जहरीले पदार्थ छोड़ देती है. जिससे ना केवल जल ही दूषित नहीं होता बल्कि पूरे पर्यावरण को नुकसान होता है. और इसी से ही अनेकों बीमारियां भी होती है.
इसी बात को ध्यान में रखते हुए 2004 में मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला किया था कि गणेश मूर्तियों का विसर्जन गैर कानूनी माना जाएगा, तथा प्लास्टर ऑफ पेरिस की बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया, गोवा में भी राज्य सरकार द्वारा पेरिस गणेश मूर्तियों के प्लास्टर की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया, कारीगरों को मिट्टी की मूर्तियों को बनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया, हैदराबाद में भी पारंपारिक मिट्टी गणेश की मूर्ति का उत्पादन करने के लिए हालिया पहलू को आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रायोजित किया गया, तथा अब भगवान गणेश की मूर्तियों में मिट्टी की तथा तस्वीर उपयोग हो इसीलिए सरकार ने जनता को प्रोत्साहन दिया तथा मिट्टी की मूर्तियां की कलाकारी से भी परिचित कराया, तथा अब यह कानून सभी जगह लागू किया गया है. और इसे भी जनता का समर्थन भी मिला है.
पर्यावरणीय चिंताओं के कारण कई परिवार पानी के निकायों से बचते हैं और मिट्टी की मूर्ति को घर पर पानी के बैरल में विसर्जित करते हैं. कुछ दिनों के बाद मिट्टी बगीचे में फैल गई है. और शहरों में विसर्जन के लिए एक सार्वजनिक परयावरणीय प्रक्रिया का उपयोग किया जा रहा है.
इको फ्रेंडली गणपति और नवजीवन
मुंबई के एक कलाकार दत्तादि कोथूर लाल मिट्टी की इको फ्रेंडली गणपति की मूर्तियां तैयार करते हैं और इसमें पौधों की बीज डालते हैं जो कि त्योहारों के अंत में मूर्तियों को विसर्जन किया जाता है. तब पानी में डुबोने के बजाए मूर्ति को एक बर्तन में रखा जाता है. और जब तक यह घुल नहीं जाती तब तक यह पानी में ही रखी जाती है. बर्तन में बोए जाने वाले बीज से एक पौधे के रूप में वापस बढ़ती है.
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