मध्यप्रदेश के इंदौर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार अध्यक्ष कांति बम ने भी 29 अप्रैल को अपना नामांकन वापस ले लिया।
इंदौर में चौथे चरण में 13 मई को मतदान होना है और 29 अप्रैल को नाम वापसी की अंतिम तिथि थी। ऐसे में अब इंदौर से कांग्रेस का कोई अधिकृत उम्मीदवार नहीं रहा। इससे पहले गुजरात के सूरत में भी कांग्रेस के उम्मीदवार निलेश कुंभाणी ने स्वयं ही अपना नामांकन खारिज करवा लिया। सूरज से पहले राजस्थान के बांसवाड़ा में कांग्रेस प्रत्याशी अरविंद डामोर बागी हो गए। कांग्रेस ने खुद अनपे प्रत्याशी डामोर को हरवाने की अपील की। तीनों ही स्थानों पर कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा ने षडय़ंत्र किया है। सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस के उम्मीदवार ही भाजपा के जाल में क्यों फंसते हैं? सब जानते हैं कि कांग्रेस सवा सौ साल पुरानी पार्टी है।
मौजूदा समय में कांग्रेस का नेतृत्व गांधी परिवार के पास है। इसमें श्रीमती सोनिया गांधी उनके पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका गांधी शामिल हैं। इन तीनों की सहमति से ही कांग्रेस में निर्णय होते हैं। कांग्रेस की ओर से दावा किया गया कि लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के चयन की एक प्रक्रिया है। यानी उम्मीदवार का चयन संगठन के विस्तृत अध्ययन के बाद होता है, लेकिन बांसवाड़ा, सूरत और अब इंदौर की घटनाएं बताती है कि उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस संगठन की कोई भूमिका नहीं है।
तीनों ही मामलों में जाहिर है कि कांग्रेस के उम्मीदवार पहले से ही भाजपा के संपर्क में थे। कांग्रेस को यह पता ही नहीं चला कि जिन व्यक्तियों को उम्मीदवार बनाया जा रहा है, उनकी भाजपा से मिलीभगत हे। ऐसे में कांग्रेस संगठन पर भी सवाल उठता है। लोकसभा चुनाव में सांसद बनने वाला नेता 20 लाख से ज्यादा मतदाताओं को प्रतिनिधित्व करता है। इंदौर को तो मिनी मुंबई कहा जाता है।
कांग्रेस के लिए यह चिंता की बात है कि इंदौर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष जीतू पटवारी का गृह क्षेत्र हैं। यदि प्रदेश अध्यक्ष के गृह क्षेत्र का उम्मीदवार ही भाजपा के जाल में फंसा हो जाते इस से पूरे मध्यप्रदेश में कांग्रेस की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता हे ।अच्छा हो कि कांग्रेस भाजपा पर आरोप लगाने से पहले पहले घर को संभाले। राजनीति में जिसे मौका मिलता है, वह तोडफ़ोड़ करता है। राजस्थान में कांग्रेस शासन में दो बार बसपा के सभी छह विधायकों को रातों रात कांग्रेस की सदस्यता दिलवाई गई। यदि इंदौर और सूतर में लोकतंत्र की हत्या हुई है तो राजस्थान में एक बार नहीं दो बार लोकतंत्र का गला घोंटा गया।